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Monday, December 31, 2012
Sunday, December 30, 2012
विदा हो गई बेटी..........
असमय
विदा हो गई बेटी
बिना डोली ........बिना पीले हाथ,
दे गई माँ को
ढेरों अश्रु
और आजन्म का संताप...........।
कहती थी-
माँ मैं पढूंगी, आगे बढूँगी
तेरे लिए
माँ मैं भैया सी जमाने से लडूंगी
पर कलयुगी दुश्शासनों ने उसे मार डाला
अंग भी वस्त्रों सा तार डाला पापियों ने
हो रहां है कृत्य कैसा
राम तेरे देश मैं
घूमते हैं कई भेड़िये मानव भेष में
बेटियाँ कैसे रहेंगी फिर सुरक्षित
इस परिवेश में।
- सुशील गैरोला ©2012
विदा हो गई बेटी
बिना डोली ........बिना पीले हाथ,
दे गई माँ को
ढेरों अश्रु
और आजन्म का संताप...........।
कहती थी-
माँ मैं पढूंगी, आगे बढूँगी
तेरे लिए
माँ मैं भैया सी जमाने से लडूंगी
पर कलयुगी दुश्शासनों ने उसे मार डाला
अंग भी वस्त्रों सा तार डाला पापियों ने
हो रहां है कृत्य कैसा
राम तेरे देश मैं
घूमते हैं कई भेड़िये मानव भेष में
बेटियाँ कैसे रहेंगी फिर सुरक्षित
इस परिवेश में।
- सुशील गैरोला ©2012
Sunday, September 16, 2012
ABHIBYAKTI.....: विफ़ल रहे आन्दोलन से.....
ABHIBYAKTI.....: विफ़ल रहे आन्दोलन से.....: मेरे एकाकी होने का मेरा मर्म... उस पर उद्द्वेलित विचारों का तवा गर्म हो कभी लेखनी से गुस्ताखी या जिव्व्हा की फ़िसलन बेशर्म तो माफ़ करना मित्...
ABHIBYAKTI.....: मेरा वजूद ...
ABHIBYAKTI.....: मेरा वजूद ...: कल पूछ बैठा मुझसे मेरा वजूद तुम आज-कल दिखाई नहीं देते..! "बिज़ी" हो क्या...? और ये कौन सा आन्दोलन चला रहे हो... "समतावादी" खुद को आईन...
मेरा वजूद ...
कल पूछ बैठा
मुझसे मेरा वजूद
तुम आज-कल दिखाई नहीं देते..!
"बिज़ी" हो क्या...?
और ये कौन सा आन्दोलन चला रहे हो...
"समतावादी"
खुद को आईने में कब से नहीं देखा..?
मैंने एक हलकी सांस ली
सोचा आज तो इसके एक-एक प्रश्न का दूंगा उत्तर
तभी किचिन से आवाज आई
मुझसे मेरा वजूद
तुम आज-कल दिखाई नहीं देते..!
"बिज़ी" हो क्या...?
और ये कौन सा आन्दोलन चला रहे हो...
"समतावादी"
खुद को आईने में कब से नहीं देखा..?
मैंने एक हलकी सांस ली
सोचा आज तो इसके एक-एक प्रश्न का दूंगा उत्तर
तभी किचिन से आवाज आई
" अभी तक बैठे हो! आज दूध लेने नहीं जाना है क्या...?"
वजूद हंस रहा था....
मैं उत्तर जरूर दूंगा
फिर कभी....!
- सुशील गैरोला
वजूद हंस रहा था....
मैं उत्तर जरूर दूंगा
फिर कभी....!
- सुशील गैरोला
©Susheel Gairola.2012
Monday, September 10, 2012
विफ़ल रहे आन्दोलन से.....
मेरे एकाकी होने का मेरा मर्म...
उस पर उद्द्वेलित विचारों का तवा गर्म
हो कभी लेखनी से गुस्ताखी
या जिव्व्हा की फ़िसलन बेशर्म
तो माफ़ करना मित्रो....!
प्राणोहुति के बाद भी विफ़ल रहे
आन्दोलन से.....
सीख लिया है सच बोलने का धर्म..!
उस पर उद्द्वेलित विचारों का तवा गर्म
हो कभी लेखनी से गुस्ताखी
या जिव्व्हा की फ़िसलन बेशर्म
तो माफ़ करना मित्रो....!
प्राणोहुति के बाद भी विफ़ल रहे
आन्दोलन से.....
सीख लिया है सच बोलने का धर्म..!
©susheelgairola2012
Monday, August 20, 2012
मेरी सोच में उसे खोट नजर आता है....
मेरी सोच में उसे खोट नजर आता है
पर आरक्षण के झुनझुने में वोट नजर नहीं आता है
मै स्कूल में उसके हाथों की चाय रोज पीता हूँ
वो बुलाने पर भी मेरी शादी में नहीं आता है
मुझसे पहले वो रोज मंदिर में चला जाता है
कई बार मुझको भी टीका लगाता है
मेरी तरह जींस और शर्ट पहनने की
कोशिश रहती है हमेशा उसकी
मुझको भाई साब कहती है बीबी उसकी
मेने सादगी से उनके हाथों के मालपुए भी खाए हैं
5 लाख के कर्ज में भी उसे बड़ा मेरा नोट नजर आता है
में कभी खुद को ब्रह्मण नहीं कहता
बस इसी लिए ......
मेरी सोच में उसे खोट नजर आता है
पर आरक्षण के झुनझुने में वोट नजर नहीं आता है .....
पर आरक्षण के झुनझुने में वोट नजर नहीं आता है
मै स्कूल में उसके हाथों की चाय रोज पीता हूँ
वो बुलाने पर भी मेरी शादी में नहीं आता है
मुझसे पहले वो रोज मंदिर में चला जाता है
कई बार मुझको भी टीका लगाता है
मेरी तरह जींस और शर्ट पहनने की
कोशिश रहती है हमेशा उसकी
मुझको भाई साब कहती है बीबी उसकी
मेने सादगी से उनके हाथों के मालपुए भी खाए हैं
5 लाख के कर्ज में भी उसे बड़ा मेरा नोट नजर आता है
में कभी खुद को ब्रह्मण नहीं कहता
बस इसी लिए ......
मेरी सोच में उसे खोट नजर आता है
पर आरक्षण के झुनझुने में वोट नजर नहीं आता है .....
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