असमय
विदा हो गई बेटी
बिना डोली ........बिना पीले हाथ,
दे गई माँ को
ढेरों अश्रु
और आजन्म का संताप...........।
कहती थी-
माँ मैं पढूंगी, आगे बढूँगी
तेरे लिए
माँ मैं भैया सी जमाने से लडूंगी
पर कलयुगी दुश्शासनों ने उसे मार डाला
अंग भी वस्त्रों सा तार डाला पापियों ने
हो रहां है कृत्य कैसा
राम तेरे देश मैं
घूमते हैं कई भेड़िये मानव भेष में
बेटियाँ कैसे रहेंगी फिर सुरक्षित
इस परिवेश में।
- सुशील गैरोला ©2012
विदा हो गई बेटी
बिना डोली ........बिना पीले हाथ,
दे गई माँ को
ढेरों अश्रु
और आजन्म का संताप...........।
कहती थी-
माँ मैं पढूंगी, आगे बढूँगी
तेरे लिए
माँ मैं भैया सी जमाने से लडूंगी
पर कलयुगी दुश्शासनों ने उसे मार डाला
अंग भी वस्त्रों सा तार डाला पापियों ने
हो रहां है कृत्य कैसा
राम तेरे देश मैं
घूमते हैं कई भेड़िये मानव भेष में
बेटियाँ कैसे रहेंगी फिर सुरक्षित
इस परिवेश में।
- सुशील गैरोला ©2012
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