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Thursday, January 8, 2015

"मुझे याद है"

मुझे याद है
वो मिट्टी के ढेरों से गाँव
गांवो के मटियाले चेहरे मासूम
पीपल की ठंडी छाँव
मुझे याद है
माँ के तन से लिपटी
गीली मिट्टी की सौंधी खुशबू
मेलों खेलों की धूम मुझे याद है।
वो
शैशव की सैतानी
ननिहाल की बूढ़ी प्यारी नानी
नन्हें हाथों को थामे
पगडंडी पर टहलाते नाना
गर्म तवे सा हुक्के का साज
वो गुड़-गुड़ की मीठी आवाज
मुंह से नाना जी का धुआँ उड़ना
मुझे याद है।

मुझे याद है
वो तालाब पुराना
डुबकियाँ लगाना
बापू के संग खेतों मे जाना
वो खाना लंबी रातों का
वो डर दादी के किस्से बातों का
हलचीरों पर नन्हें कदम टिकaना
मुझे याद है।

मुझे याद है
रंभा की रंभाती बछिया
घुर्राते बैल मवाली
हरियाले जंगल लहराती हरियाली
और बुआ की छुन-छुन हंसिया
मुझे याद है।

वो
स्कूल की घंटी का बजना टन-टन
छुट्टी होने पर हर्षया चंचल मन
वो बस्ता-पाटी, बिछुड़े सहपाटी
लुका छिपी और घिस्सापाटी
पीयूल पर फैसला अल्हड़ बचपन
मुझे याद है।

( हलचीर: खेतों मे हल लगाने के पश्चात बनी उभरी मिट्टी की लकीरें
  पीयूल : चीड़ के सूखे पत्तों का ढेर)
 -सुशील गैरोला©2015

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