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Thursday, January 29, 2015

फिर से ......

धीरे धीरे
पिघल रहा है
यादों की सतहों से चिपका
बर्फ़ीला एकाकीपन
सुलगा गया फिर एहसास कोई
...............खामोशी से ।
बहने लगा हवाओं में
फिर से रंगत भरी फिज़ाओं मे
चिराग लिए आया है कोई
दीप जलाने
मेरी सुनी अंधियारी कुटिया का ।
धूल पौंछ कर देखी मैंने
चित्र कोश की सब तस्वीरें
वैसे ही अब भी हो
जैसे हंस बोल रहे थे
...................वर्षों पहले।
ना मैं बदला
ना ही तुम  
बदल गई तारीखें लेकिन
हाँ कुछ पल बदले
एकाकी के गुमसुम
अब बदलेंगे मिलकर कल
.प्रीतम..................साझे पल।
 -सुशील गैरोला©2015


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