पलकें
बंद करता हूँ तो
पाता हूँ...तुम्हें
तुम्हारा मुस्कराना हौले से
आंखो से बतियाना
और न जाने
कितनी ही बातें
बायाँ करती हैं
तुम्हारे एहसास को
तुम्हारे......प्यार को।
तुम्हारा
पलकों की ओट से देखना
और फिर शर्मा कर छुप जाना
उन्हीं के भीतर
बहुत कुछ बता जाना
कुछ भी न जता कर
बढ़ा देता है मेरी धड़कनों को
वो रूमानी स्पर्श
दे जाता है कितना स्नेह
जीवन के अधूरेपन को भरने की
मेरे कोशिश मे यूं ही रहना
सदा साथ
तुम और तुम्हारी याद
और मैं
घुलता जाऊंगा तुम्हारे प्यार में
दूध मे मिश्री की तरह।
----- सुशील गैरोला
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