अजनवी
है शहर
मैं
अकेला हूँ।
रास्ता अन्तहीन और
खत्म होता नहीं सफर
मैं
अकेला हूँ।
तेरी यादें
जो धूप और छाँव सी
आती थी वियावन मैं
वो भी अब
जाने गई किधर
मैं
अकेला हूँ।
सितारे
नजर आते नहीं
चाँद आता है चला जाता है
पल भर ही जाये ठहर
मैं
अकेला हूँ।
सर्द
दिन हैं उदास
रातें हैं
खामोश सरहदों के बीच
डरता है यहाँ डर
मैं
अकेला हूँ।
- सुशील गैरोला
©2013
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