तुम्हारा साथ......
तुम्हारा साथ
जैसे
रेत पर लिखा
कोई अनुबन्ध
लहरों से बनता-बिगड़ता
हुआ भी और ना हुआ भी
तुम्हारा साथ.....
जैसे बादल रुआईं
ना स्पर्श की अनुभूति
ना सिरहान न कोई स्पंदन
छुआ भी और अनछुआ भी
तुम्हारा साथ
छाया सा
सिर्फ प्रकाश की उपस्थिती में
साथ भी और नहीं भी
........तुम्हारा साथ।
- सुशील गैरोला ©2013
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