मेरी खामोशियों
मेरी तनहाइयों
और मेरी उदास शामों से
कितनी और दीपावलियों के चिराग
पूछेंग सवाल !
और कितनी बार
आसमान ताक कर
में सिरफ़ मुस्कराता रहूंगा
ऐसा ना हो
मेरे सब्र की इनतहं खतम् हो जाये
इसलिये चले आओ इस दीपावली पर
जलाने वो चिराग
जिनहे तुम बुझा आई थी
कुछ बरस पहले
तेल कि कुछ बूदें
शेष ! रहने तक ।
- सुशील गैरोला
No comments:
Post a Comment