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Saturday, October 25, 2014

वो आ रहे हैं

वो आ रहे हैंजी हाँ उन्हे खबर है की हमारी दुखती नस कहाँ हैइसलिए इस बार वो हमारे दारुणहर्ता बन दुखों को दूर करने के कई सब्जबाग लेकर आ रहे हैं।होशियार रहें..... वो नकाब ओढ़े
खुद को हम सा जताएँगे 
हमारे दर्द में अपनी छटपटाहट दिखाएंगे दुर्गम के गम दूर करने के रंगीन वादों के साथफिर हमें लूट लेने के इरादों के साथ हमारे जख्मों पर फेरने मरहमी हाथ
.....
वो आ रहे हैं।मुझे सुनाई दे रही है शकुनि षडयंत्रों की सुगबुगाहटअनगिनत शजिशों की आहटहम जैसे दिखें इसलिए हमारे हालात से लड़े से हमारी मुसीबतों से भिड़े से और हमारे हकों के लिए खड़े से वो हमारे दर्द के गीत गा रहे हैं.
.................. वो आ रहे हैं। 
-सुशील गैरोला©2014

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